क्योंकि आज मैं विवश हूँ घर पर रह जाने को …

March 31, 2020

क्योंकि आज मैं विवश हूँ घर पर रह जाने को 

आज मैं आजाद हूँ मन की करने को ,
आज मैं स्वछंद हूँ बिना अलार्म घडी के सोने को ,
आज है मेरे पास समय वह नई सभयता के “मी टाइम” बिताने को ,
आज मेरे पास समय है परिवार के साथ वक़्त बीताने को ,
पर फिर भी क्यों विचलित है ये मन बार बार भीड़ में जाने को ,
क्योंकि आज मैं विवश हूँ घर पर रह जाने को |

हाँ आहे भरे ते मैंने हिन् बचपन के छुट्टियों की ,
हाँ मंडली में बैठ कर मांगी थी कामना खाली समय की ,
हाँ मैंने हिन् मार्च के महीने में परिवार के लिए छुट्टी मांगी थी ,
हाँ मैंने हिन् ईश्वर से सड़को पर शान्ति की गुहार लगाई थी ,
पर फिर भी क्यों विचलित है ये मन बार बार उन्ही आदतों को दोहराने को ,
क्योंकि आज मैं विवश हूँ घर पर रह जाने को |

आया था मैं अपने गांव छोड़ एक नया संसार बसाने को ,
भीड़ में रह कर अपनी पहचान बनाने को ,
बड़े शहर में रह कर बड़ा बन जाने को ,
छोड़ आया था गांव की उन बंज़र खेत खलियानो को ,
भीड़ में रोटी कमाने को ,
पर फिर भी क्यों विचलित है ये मन बार बार भीड़ लगाकर उन्ही गावों को लौट जाने को ,
क्योंकि आज मैं विवश हूँ घर पर रह जाने को |

गया था विदेश , मैं वहाँ बस जाने को ,
अपनी आकांक्षाओ को पर लगाने को ,
अपनों को भूल गया था परायों के बीच अपनी जगह बनाने को ,
खाई थी कसमे फेसबुक पर कभी न लौट कर आने को ,
क्यों आई याद उसी मिटटी को वापस अपनाने को ,
गुहार लगाई अपने देश की सरकार को हमे वापस लाने को ,
अरमान अभी भी हैं अंजानो के बीच रह जाने को ,
पर फिर भी क्यों विचलित है ये मन बार बार भीड़ लगाकर अपने देश लौट जाने को ,
क्योंकि आज मैं विवश हूँ घर पर रह जाने को |

मैंने हिन् बनाई थी मोटर कार धुँवा उड़ाने को ,
धुँवा के छल्ले बना अपने फेफड़े जलाने को |
मैंने हिन् भरवाई थी तालाब ऊँचे महल बनाने को ,
उसी महल में रह कर पानी की बूँद बूँद को तरस जाने को |
मैंने हिन् काटी थी जंगल आग जलाने को ,
पहाड़ो में जमे हिमनद पिघलाने को |
पर फिर भी क्यों विचलित है ये मन बार बार भीड़ लगाकर मानव जाती मिटाने को ,
क्योंकि आज मैं विवश हूँ घर पर रह जाने को |

आज मैं विवश हूँ घर पर रह जाने को ,
क्योंकि प्रण है मेरा मानव जीवन बचाने को |
चाहे हो जाये विचलित ये मन बाहर कितना भी जाने को ,
रह जाऊंगा मैं घर पर सब की जान बचाने को ,
कोरोना कि महामारी को हारने को ,
दुनिया को फिर से खुशियों से सजाने को ,
फिर से सब से मिल ठहाके लगाने को ,
इसलिए आज मैं विवश हूँ घर पर रह जाने को |

अभिषेक

सूचना : उपरोक्त लेखनी एक काल्पनिक रचना है एवं इसे किसी व्यक्ति , विशेष , समुदाय या किसी भी अन्य के भावनावो को हानी पहुंचाने के दृष्टिकोण से नहीं लिखा गया है | अगर फिर भी किसी की भावनाओं को क्षति पहुंच रही हो तो लेखक उसके लिए क्षमा प्रार्थी है |

 

corona lockdown posterइस रचना के माधयम से सब से अपील है कि कृपया कर लॉक डाउन के दौरान अपने घरो में रहें और सरकारी आदेशों को पालन करें एवं कोरोना को हारने में सरकार और स्वयं का सहयोग करें |

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